भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हमारे गाँव मामाजी आया / दोपदी सिंघार / अम्बर रंजना पाण्डेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमारे गाँव मामाजी आया
चावल से किया टीका
गेंदे का हार पहनाया

एसडीएम कलेक्टर एसपी सब हाथ जोड़ खड़े थे
फिर दलित आदिवासियों को
मामाजी ने बुलवाया

हमारे गाँव मामाजी आया
लाइन बनाके हाथ जोड़ के मुँह झुकाए
 खड़े भांजे
 
मामाजी बोले
आज दलित की चाय पियेंगे
 बम्मन बनियों का बहुत खाया

चवन्नी लीटर दूध बच्चे को जो लेती थी
 उससे चाय बनाई, बिस्कुट मँगावाए
 घूँट भर मामाजी ने चाय पी
 बिस्कुट उन्हें पसंद न आए
 
 बच्चा मेरा ख़ुश कि अब बिस्कुट खाएगा
 मगर अफ़सर लोग
बिस्कुट का कर गए सफाया
हमारे गाँव मामाजी आया।

(हमारे मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्रीजी को मामाजी बोलते हैं।)