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हमारे गिर्द झोंके हैं सदा लू के चला करते / रंजना वर्मा

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जहाँ तुम हो बसे शायद वहाँ ठंडी हवा भी हो
हमारे गिर्द झोंके हैं सदा लू के चला करते॥

जहाँ तुम हो वहाँ पर शाम ढलती है सुहानी-सी
हकीकत ज़िन्दगी की भी वहाँ है इक कहानी-सी।
वहाँ आतप पिघल जाता है बन कर धार पानी की
हँसा करती वहाँ हैं सिर्फ़ खुशियाँ जिंदगानी की।

तुम्हारी आँख में आँसू हँसी चिंगारियाँ भी हैं
हमारी आँख में तो सिर्फ़ मोती हैं पला करते।
हमारे गिर्द झोंके हैं सदा लू के चला करते॥

तुम्हारे पत्थरों में ही छिपा मधुमास है मेरा,
जगत के भोग में ही तो कहीं संन्यास है मेरा।
तुम्हारी कल्पनाओं पर अटल विश्वास है मेरा
न दो तुम साथ तो यह प्राण भी उपहास है मेरा।

खिले हरियालियों में ही तुम्हारे प्यार का उपवन
हमारी भूमि मरुथल पाँव बालू पर जला करते।
हमारे गिर्द हैं झोंके सदा लू के चला करते॥