हमारे गीत / नाज़िम हिक़मत / अनिल जनविजय
हमारे गीत निकल आएँ उपनगर की सड़कों पर
हमारे गीत खड़े हो जाएँ हमारे घरों के सामने
टूट पड़ें खिड़कियों पर तोड़ दें कुण्डे-कुण्डियाँ
थाम लें दर्द को, सम्भाले रहें
जब तक कि द्वार छोड़ न दें रास्ता
समझ में न आने वाले हमारे गीत
अकेलेपन में गाए हैं जो त्यौहार वाले दिनों में
और शोकसन्ध्या पर हमारे गीत
उँड़ेल दे मिट्टी के तेल के पीपे
हिदायतें दे दो — अपने बड़े-बड़े हाथों से
सनोबर के पेड़ों में गूँजती है हवा जैसे
गूँजनी चाहिए सारी आवाज़ें हमारे गीतों की एक ही आवाज़ में
हिरावल दस्तों में हों आगे-आगे हमारे गीत
और गिरें वे शत्रु पर पहले-पहल आक्रमण के समय
हमारे बहादुर गीतों के चेहरे
हो जाने चाहिए लहूलुहान
हमारे चेहरों के लहूलुहान होने से पहल्र
हमारे गीत निकल आएँ उपनगरों की सड़कों पर
हमारे गीत बैठ नहीं सकें घरों में
अकेले किसी हृदय में
परदे लगे हैं जहाँ और बन्द हैं दरवाज़े
हमारे गीत
निकल आए बाहर हवाओं से मिलने !
1931
रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय