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हमारे घर आए हैं आप / कैलाश झा 'किंकर'

हमारे घर आए हैं आप।
ज़रूरी है यह मेल मिलाप॥

उजालों से कैसा परहेज
पनपते अन्धेरों में पाप।

हवस की लपटें हैं चहुँओर
मिटाना है मिलकर संताप।

नहीं आँखों में है पहचान
जला धू-धू कर पुण्य प्रताप।

अहिंसा, सत्य और ईमान
बने ये सद्गुण ही अभिशाप।

तिमिर में बनता आशाराम
उजालों में करता है जाप।

पुरुष सबके सब नहीं ख़राब
नहीं सब नारी झगड़ा-छाप।

पुरुष भी सहते रहकर मौन
सहा करती नारी चुपचाप।

बसाने को सुन्दर परिवार
बहुत कुछ सहते हैं माँ-बाप।

बनेगा सुन्दर हिन्दुस्तान
फरिश्तों का सुनिये पदचापs