हमारे डर / आरती तिवारी
घर से निकलते ही
भीड़ में खो जाने के डर
अच्छे कपड़ों मेँ
घूरे जाने के डर
सादे कपड़ों में
आम नज़र आने के डर
अव्वल आने पर
साथियों की ईर्ष्या के डर
औसत रहने पर
पिछड़ जाने के डर
प्रेम की अभिव्यक्ति पर
ठुकराये जाने के डर
ब्रांडेड माल से ठगे जाने के डर
सस्ते में घटिया उत्पाद के डर
दस्तावेजों के नकली पाये जाने के डर
बाढ़ और सूखे से
बाज़ार बैठ जाने का डर
मन्दी में, बेरोज़गार हो जाने के डर
हमारे छरहरे डर
अब भीमकाय हो चले हैं
हमारे डर करने लगे है
दबाव का विस्फ़ोट
हमे ज़रूरत है, एक मसीहा की
बदल डाले जो दुनिया
बना दे जन्नत ऊगा के खुशियों की फसल
मिल जाये कोई जादुई चिराग
और पल भर में,हो जाएँ
सारे रास्ते आसान
हम अकर्मण्य से
बैठे हैं प्रतीक्षा में
हाथ पर हाथ धरे
कोई आये और
मिट जायें हमारे डर