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हमारे दिल में इक तूफ़ां उठा है / रंजना वर्मा

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हमारे दिल में इक तूफ़ां उठा है।
जो दिल के भेद सारे खोलता है॥

जिसे सब ढूँढ़ते वह चैन मन का
हुआ जैसे कहीं पर लापता है॥

बहुत नाराज़ है दुनियाँ से लेकिन
परस्तिश भी उसी की कर रहा है॥

मिले थे दिल कि जैसे दूध पानी
न जाने फिर हुआ क्यों फ़ासला है॥

मुहब्बत का हमारी आशियाना
तुम्हारे बिन पिया सूना पड़ा है॥

नहीं अब नींद आँखों में हमारी
सुना घर में तुम्हारे रतजगा है॥

लिये पैग़ाम फिरती हैं हवाएँ
फ़िज़ा में खुशबुओं का सिलसिला है॥