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हमारे नाम के पते से खल्क को जो / तारा सिंह

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हमारे नाम के पते से खल्क को जो
न मिले तुम्हारा घर, तो क्या करें

तदवीरें—तकदीरें हमारे कुछ काम न आईं
दवा बन गई जहर, हम क्या करें

सुनाना था किस्सा-ए-गमे दिल का
सुनकर तुमको नींद न आई, हम क्या करें

उसकी ना-उम्मीदी में भी उम्मीद रखती हो
हमने जो की बफ़ाई, उसका हम क्या करें

माना कि बुरे हैं हम, तो बुरा जान के मिलो
हमारे ऐब को जो ऐब, न समझो, हम क्या करें