हमारे पुरखों की मज़ार / यानिस रित्सोस / विनोद दास
हमें अपने शहीदों और उनकी ताक़त की हिफ़ाज़त करनी चाहिए
अगर किसी दिन हमारे दुश्मन उनकी लाश लेकर चम्पत हो गए
तब उनकी देखभाल के बिना हमारे लिए खतरा दुगुना हो जाएगा
अपने घरों, फ़र्नीचरों, खेतों
ख़ासतौर से अपने शूरवीरों और समझदार पुरखों के मक़बरे के बिना
हम किस तरह ज़िन्दगी जिएँगे ।
हमें नहीं भूलना चाहिए कि किस तरह स्पार्टावासियों ने
टेगेया से ओरेस्तेस की हड्डियों को चुराया था
हमारे दुश्मनों को कभी भनक भी नहीं लगनी चाहिए
कि हमने अपने शहीदों को कहाँ दफ़न किया है ।
हालाँकि हम हर वक़्त कैसे सूंघ सकते हैं कि कौन हमारा दुश्मन है
या कब और कहाँ से वे नमूदार हो सकते हैं
लिहाज़ा न तो उनकी मज़ार भव्य होनी चाहिए
न ही तड़क-भड़क वाली सजावट या ऐसी कोई चीज़
जो अपनी और ध्यान खींचे या ईर्ष्या पैदा करे ।
हमारे शहीदों को ऐसी कोई ज़रूरत नहीं
वे अब थोड़ी सी चीज़ से ही सन्तुष्ट, प्रसन्न, ख़ामोश हो जाते हैं
जल आचमन, व्रत-चढ़ावा और फ़ालतू तामझाम से वे उदासीन रहते हैं
बेहतर है कि उनकी मज़ार पर रख दिया जाए
एक सादा पत्थर और जेरेनियम का एक गमला
या बना दिया जाए एक गुप्त निशान या कुछ भी नहीं
हिफ़ाज़त की नज़र से अगर हम रख सकें
तो हमें उन्हें अपने भीतर रखना चाहिए
और इससे बेहतर है कि ख़बर ही न हो कि वे कहाँ दफ़न हैं
हमारे ज़माने में जिस तरह चीज़ें बदल रही हैं
कौन जाने हम ही किसी दिन उन्हें क़ब्र से खोद कर बाहर फेंक दें
नोट: यूनानी मिथक के अनुसार जंग जीतने के लिए स्पार्टावासियों ने
टेगेया नगर से ओरेस्तेस की हड्डियों को चुराया था।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास