हमारे बीच जाने कितने समुंदर हैं / नीलोत्पल
हमारे बीच जाने कितने समुंदर हैं
उस पुराने जर्जर मकान की तरह
जहां अब कोई नहीं रहता
वहां प्यार, उत्सव, संघर्ष दफ़न हैं
जो किसी के नहीं
सिवाए उस राख के
जो चुन ली गई नदी के बहाव में
काटती लहर को
मैं आता हूं वह स्मृति लिए
तुम्हारे पास
मैं चाहता हूं कि
जो सुंदर और अनाम चीज़ं दफ़न हैं
उन्हें हम देखें
हमारे बीच जाने कितने समुंदर हैं
जाने कितनी फैली वृक्षों की जड़ें
लेकिन कितना बिखराव !
मैं तुम्हें उसी तरह चूमना चाहता हूं
कि वह नष्ट संसार
हमें अपनी अधूरी आंखों से देखे
और दे सके हमें वे निर्जीव शब्द
जिसके लिए एक आदमी जीता है
अपनी मृत्यु के बाद भी
होगा यह कि
हम मरेंगे अपनी-अपनी यादों के साथ
ख़ाली आकाश से देखते हुए
नीचे वह घर अभी
ज़िंदा है उखड़ती सांसों में
प्यार अमर नहीं होगा
कुछ है जो बुदबुदाया जाएगा
सम्बलों की गहराई में
मैं तुम्हारी उंगलियों और आँखों के सहारे
महसूस करता रहूंगा
अपने जीवन के वे तमाम क्षण
जिन्हें हमने ताप और प्यार से रचा
जो किसी तरह घर होंगे
उखड़ते पोपडे़, सीलन और दरारों के बीच
धीमे-धीमे सांस लेते