हमारे लिए भेजे गए दादी के चिउड़े / शहंशाह आलम
सायकिलें रोज़ चोरी हो रही हैं
पिता का आदिम भरोसा
हर मोड़ हर चैराहे पर
हर इतिहास में
हिचकियां ले रहा है
जितनी बुरी ख़बरें हैं
जंगल की तरफ़ से दौड़ी आती हैं
महान नेता और महान मसख़रे
सबको एक चिंता ने घेर रखा है
क़त्लगाहों से निकलने वाली चीख़ों को
अद्भुत बनकर सुना जा रहा है
कोने अंतरों में सपने
उस कुछ बड़े कुछ चौड़े
दुपट्टे वाली लड़की की प्रतीक्षा कर रहे हैं
जबकि लड़की को छेंक रखा है
मरुस्थल की भयानक आवाज़ों ने
जिस तरह सायकिलें रोज़ चोरी हो रही हैं
जिस तरह लाखों हाथ कमज़ोर पड़ते जा रहे हैं
जिस तरह बच्चों के सिक्के खो रहे हैं
जिस तरह हमारी अपनी शिनाख़्त ख़त्म हो रही है
जिस तरह अम्मा आध कोस चलकर थक जा रही हैं
जिस तरह शिकारी और तिलचट्टे हंस रहे हैं
हमारे लिए भेजे गए दादी के चिउड़े भी
घर पहुंचने से पहले ग़ायब हो रहे हैं
दिन भर की सब्जि़यां रसोई घर से ग़ायब हो रही हैं
चीनी हो रही इतनी महंगी कि
हम ख़रीद ही न सकें न खा सकें
हवा और पानी में
माहुर मिला दिए गए हैं
पेड़ दिनोंदिन कम हो रहे हैं
सर्कस के बाघ हाथी और अन्य चौपाए और जोकर
अपनी गिरती सेहत को लेकर फ़िक्रमंद हुए जा रहे हैं
किसी भी देश के
किसी भी महामहिम राष्ट्रपति के लिए
एक साथ इतना कुछ होना
और इतना कुछ घटना
मेरा विश्वास है
कोई मायने नहीं रखता होगा।