भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमारे लोकतंत्र में / शहंशाह आलम
Kavita Kosh से
हमारे लोकतंत्र में वो
दस दिशाओं से आए
इस सभ्य सभ्यता में
मारे गए लोगों की
विधवाओं का विलाप सुनने
जबकि समाप्त हुआ
लोकतंत्र का उत्सव
इस लोक से कब का