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हमारे श्ययामसुन्दर को इशारा क्यों नहीं होता / कीरति कुमारी

हमारे श्ययामसुन्दर को इशारा क्यों नहीं होता।
पड़ा है दिल तड़पता है सहारा क्यों नहीं होता॥
हुई मुद्दत से दिवानी न तूने ख़बर ली मेरी।
मरीजे़-इश्क में मरना हमारा क्यों नहीं होता॥
न कल दिनरात है मुझको जुदाई में तेरे प्यारे।
लबों पर जान आई है सहारा क्यों नहीं होता॥
न दुनियाँ मुझको भाती है न मैं भाती हूँ दुनियाँ को।
मगर ‘कीरति’ का दुनिया से किनारा क्यों नहीं होता॥