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हमारे समय में / लवली गोस्वामी

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हहकारती अनियंत्रित जंगल की आग कहती है
कि वह दिये की प्रतिनिधि है

गाँव उजाड़ती बाढ़ ने मासूमियत से कह दिया
उसे सूखे खेतों पर तरस आ गया था

नालियाँ इठलाती हुई बहती है
खुद को गंगा-जमुना की सहोदर बताती हैं

कुछ मगरमच्छ रो पड़े
लोगों ने समुद्र के पानी पर लाँछन लगा दिया

कुछ बिल्लियों के भाग से छींका टूटा
तो अधिकतर मेहनत छोड़कर भाग्य बँचवाने निकल पड़े

हमारे समय में
श्रेष्ठ कलाओं की तरह श्रेष्ठ स्त्रियाँ इसलिए प्रचलन से बाहर हैं
क्योंकि उन्हें समय देकर आत्मसात करना पड़ता है

हमारे समय में
कुछ शब्द हैं, जो हड़बड़ी में अर्थ छोड़कर वाक्य में चले आये हैं
कुछ परिभाषाएँ हैं जो अपने शब्द छोड़कर दौड़ पड़ी हैं।