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हमारे हाथ / शैलजा सक्सेना
Kavita Kosh से
तुम्हारे हाथ में चुप
पड़ा मेरा हाथ,
जैसे खरगोश छोटा सा
अपने बिल में सुरक्षित!
जैसे बैठी हो चिड़िया अपने घौंसले में!
तुम्हारे हाथ में चुप
पड़ा मेरा हाथ।
तुम्हारे हाथ से मेरा हाथ
ले रहा है तुम्हारी चिंतायें,
तुम्हारी परेशानियाँ,
पिघला रहा है तुम्हें अपनी नरमी से!
तुम्हारा हाथ
मेरे हाथ को
दे रहा है एक मज़बूत भरोसा!
खुरदुरे पोरों से झर रही है
कोमलता!
हथेली की लकीरों से मिलकर बने घर में,
हमारी चुप्पी में,
अचानक बोल उट्ठे
हमारे हाथ॥