Last modified on 9 नवम्बर 2017, at 12:27

हमें अपना बताये जा रहे हैं / भावना

हमें अपना बताये जा रहे हैं
मगर सब कुछ छुपाए जा रहे हैं

पके हैं कान जिन किस्सों को सुन कर
वही फिर- फिर सुनाये जा रहे हैं

उसी को कह रहे हैं अन्नदाता
उसी को ही सताए जा रहे हैं

हमें है न्याय की हरदम प्रतीक्षा
वो मुजरिम को बचाए जा रहे हैं

सुना है कोख में अब आसमां की
भरम के फल उगाये जा रहे हैं

जहां से लूटने की साजिशें हो
वहीं पहरे बिठाए जा रहे हैं

उजाले लेकर भी वो क्या करेंगे
जिन्हें अंधे बनाये जा रहे हैं