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हमें उम्र भर इश्क़ करना / विपिन सुनेजा 'शायक़'
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हमें उम्र भर इश्क़ करना न आया
किसी की अदाओं पे मरना न आया
कटा आए सर ही तुम्हारी गली में
कभी सर झुका कर गुज़रना न आया
तुम्हारी तरह हम कभी हो न पाए
हमें बात करके मुकरना न आया
मुक़द्दर को हमने कभी कुछ न समझा
मुक़द्दर से तकरार करना न आया
हमें तेज़ चलने की आदत नहीं थी
ज़रा देर तुमको ठहरना न आया
मैं ख़ुशबू हूं लेकिन गुलों में हूं पिन्हाँ
हवाओं में मुझको बिखरना न आया
हुआ शौक़ हम को बिगड़ने का "शायक़"
बिगड़ तो गए फिर सँवरना न आया