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हमें एक-दूसरे से बिछड़ जाने के लिए / शहंशाह आलम

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शबनम के लिए

हमें एक-दूसरे से बिछड़ जाने के लिए
किसी टमटम पर बिठाकर अथवा
किसी बहुत पुरानी सायकिल पर चढ़ाकर
हमारी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ हमें
किसी बिलकुल उजाड़ रास्ते की तरफ़
हांक दिया जाता है पुरखों की छायाओं की तरह
और रास्ते में आग लगा दी जाती है

इस वहशी वक्त में इस दरिंदे समय में
यहां अधिकांश को अधिकांश से मिलने नहीं दिया जाता
यहां हम अक्सर कइयों से बिछड़ने का ग़म भी मना नहीं सकते
उनका कहना है कि यहां हमारा ही नाम जपते रहो
किसी खंडहर की मानिंद

जानम! हमारा अग़वा किस तरह कर लिया जाएगा
नानबाइयों के यहां के सपने दिखाकर

जानम! हमारा क़त्ल किस तरह कर दिया जाएगा
जब हम अपने पेड़ पर वाले मकान पर चढ़े होंगे
चिडि़यां को दाने खिला रहे होंगे पुकार रहे होंगे हरे को
धनिये व पृथ्वी की सुगंध को अपने भीतर समो रहे होंगे
हम ख़ानाबदोश के साथ बातें कर रहे होंगे
हमारा क़त्ल कर दिया जाएगा

उस वक्त कैफ़े में भीड़ बढ़ने लगी थी
आदमियों के चरित्र पर बहसें भी होनी शुरू हो गई थीं
‘बैगपाइपर’ के बदले लड़कियों को अड्डे पर बिठाया जाने लगा था
जुआख़ाने का ईजाद बहुत पहले हो चुका था
बाज़ार लगाने वालों को दंतखोदनी हाथ लग चुकी थी

इन घटित-अघटित घटनाओं के बीच जब मैं और तुम
झील की किसी नाव पर आन मिलने के लिए
उत्साहित हो रहे थे, मेरे और तुम्हारे मुंह पर
टेप चिपका दिया गया बुरी तरह
हमारे हाथों को पुश्त पर बांध दिया गया
हमारे पांवों को ज़ंज़ीरों से जकड़ दिया गया
दुनिया ऐसी ही है मेरे हम क़दम, मेरे हमसफ़र

जब हम गेहूं के लिए चावल के लिए
और मिट्टी तेल के लिए क़तार में खड़े हुए
हमें धकेल दिया गया एक तरफ़ प्रतिष्ठितों के द्वारा
और हमसे कहा गया कि जाओ, किसी लंबे विशाल पुल पर
जाकर टहलो, इसलिए कि आप सिर्फ़ टहलने के लिए हो
दुनिया पहले ऐसी नहीं थी मेरे हम क़दम, मेरे हमसफ़र

मुझे मेरी मजूरी की नौकरी अच्छी लगती है
लेकिन मुझे मेरी मजूरी की नौकरी पर
रखने के लिए तैयार नहीं है कोई न पक्ष न विपक्ष में
दुनिया अब ऐसी ही हो गई है मेरे हम क़दम, मेरे हमसफ़र

तुमको पता है कि मैं और तुम सिर्फ़ बिछड़ने के लिए हैं
मेरे और तुम्हारे बिछड़ने का सही-सही रहस्य
किसी जंगली भैंसे को पता होगा कठफोड़वा भी बता सकता है
यह रहस्य और चिम्पैंज़ी भी इस बात की जानकारी रखता होगा
तुमको पता है कि किनारा छोड़े जा रहे
जहाज़ को हम पकड़ लेंगे

इतना पता है कि हमारी संवेदनाओं के साथ-साथ
दस्ती कैंची से चांद को कतरा जा रहा है
आरी से दरिया किनारे की मछलियों को
भीड़ में फंसे आदमियों को फासीवादी विचारों से

अगर सच यही है बिलकुल यही है
तो मैं, मेरे शत्रुओं के विरुद्ध एक तवील नज़्म पढ़ता हूं
इसलिए कि कहीं पूरा-का-पूरा चिडि़याख़ाना जला दिया गया है
और हम-तुम एक दफ़ा फिर बिछड़ गए हैं।