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हमें छेड़ कर मुस्कराता बहुत है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
हमें छेड़ कर मुस्कुराता बहुत है।
सलोना कन्हैया सताता बहुत है॥
नहीं नीर भरना हमें रास आता
धरी शीश मटकी गिराता बहुत है॥
बड़े ही जतन से सँजोया जो माखन
मिले ज्यों ही अवसर चुराता बहुत है॥
लगे घेरने जब हमे मोह माया
सदा बंधनों से बचाता ब हुत है॥
कहे कोई कुछ भी मगर श्यामसुंदर
किया अपना वादा निभाता बहुत है॥
पड़े यदि विपद तो बढ़ा हाथ देता
मुसीबत से सबको बचाता बहुत है॥
हमें दे सुना मुक्ति की धुन कन्हैया
सुना है तू वंशी बजाता बहुत है॥