भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हमें छेड़ कर मुस्कराता बहुत है / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमें छेड़ कर मुस्कुराता बहुत है।
सलोना कन्हैया सताता बहुत है॥

नहीं नीर भरना हमें रास आता
धरी शीश मटकी गिराता बहुत है॥

बड़े ही जतन से सँजोया जो माखन
मिले ज्यों ही अवसर चुराता बहुत है॥

लगे घेरने जब हमे मोह माया
सदा बंधनों से बचाता ब हुत है॥

कहे कोई कुछ भी मगर श्यामसुंदर
किया अपना वादा निभाता बहुत है॥

पड़े यदि विपद तो बढ़ा हाथ देता
मुसीबत से सबको बचाता बहुत है॥

हमें दे सुना मुक्ति की धुन कन्हैया
सुना है तू वंशी बजाता बहुत है॥