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हमें ज़मीन पर रहने दो / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
हमें हवाईजहाज़ की यात्राओं में
कत्तई कोई दिलचस्पी नही है
अतः उनके रोचक आख्यान सुनाकर
मुझे चमत्कृत करने को कोशिश न करो
तुम जितना ऊँचा उड़ना चाहते हो, उड़ो
लेकिन हमें ज़मीन पर रहने दो
हम पगडण्डियों के लोग हैं
जब कभी - कभार किसी ज़रूरी काम से
शहर जाना पड़ता है तो सड़कें हमसे
हहाकर मिलती हैं
इन सड़कों को हमने बनाया है
हमारे क़दमों के निशान यहाँ दर्ज हैं
मुझसे मत करो दिलफ़रेब शहरों की बातें
हम जानते है कि वहाँ किस तरह के लोग
रहते हैं
वे हमें मैले - कुचैले कपड़ों में देखकर
हिकारत से मुँह फेर लेते हैं
जैसे हम उनके लिए कोई अजूबे हो
उन्हें पता नही ये शहर हमारे बनाए हुए हैं
जिनमें वे रहते हैं ।