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हमें दर्पणों ने सिखाया है इतना / रुचि चतुर्वेदी

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हमें दर्पणों ने सिखाया है इतना।
कि हर मन को पढ़ना हमें आ गया है॥
वो बस ढाई आखर ही कह दें कभी तो,
कथा शेष गढ़ना हमें आ गया है॥

पलटते रहे पृष्ठ ही चाहतों के,
पढ़ा क्यूँ नहीं प्यार का ग्रंथ कोई।
अगर बाँच लेते किसी राधिका को,
तो पाते नहीं प्रेम में अंत कोई॥

कोई क्या बिगाड़े मधुर भावना को,
बिखरकर सँवरना हमें आ गया है॥

है दर्शन यही ज़िन्दगी का हमारी,
कि खोया नहीं कुछ तो पाओगे कैसे।
नहीं यदि पढ़ा राम की आत्मा को,
सिया का हृदय बाँच पाओगे कैसे॥

समय से सदा ही रही जंग अपनी
युगों से झगडना हमें आ गया है॥

अधर मुस्कुराने लगे हैं ये फिर से,
ये नैना नई रोशनी से खुले हैं।
कि पाए बिना भी उसे पा लिया है,
अधर ये खुशी की खनक में घुले हैं।

हथेली अभी दूर मेंहदी से लेकिन
हर इक पोर मढ़ना हमें आ गया है॥

हमारे कदम ना लगें लडखडाने,
हटा दो चलेंगे हम हाथों के बल पर।
समर्पण के भावों को ऐसए सजायें प
लिखेंगे कहानी हृदय के पटल पर॥

भले कोई दीवार पथ में खड़ी हो तो
तो हिम्मत से बढ़ना हमें आ गया है॥