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हमें नहीं पता / प्रभात
Kavita Kosh से
तुम अगर मिल सकती होती
या मैं तुमसे मिल सकता होता
तो ज़रूर मिल लेते
बावजूद हमारे बीच फैले घने कोहरे के
इसी में ढूँढ़ते हुए हम एक दूसरे का हाथ पकड़ते
छूने से पहचान जाते और कोहरे में ही गुम हो जाते
पहले की ही तरह ऐसे कि कोहरे को भी न मिलते
तेज़ बौछारों में निकल पड़ते एक दूसरे के लिए
कनपटी से कान उखाड़ ले जाने वाली
चाकू आँधी में निकल पड़ते एक दूसरे के लिए
मिलना छोड़ो हम दिखते तक नहीं कहीं
जैसे मैं इस धरती पर जीवित नहीं
जैसे तुम इस धरती पर जीवित नहीं
चाँद के बारे में पृथ्वीवासियों को जैसी जानकारियाँ हैं
वैसी ही जानकारियाँ हैं हमें एक दूसरे के बारे में
हमें नहीं पता सच क्या है और वह कैसा महसूस होता है