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हमें प्रकाश चाहिए / रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध'

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हमें प्रकाश चाहिए, हमें प्रकाश चाहिए ,
हमें प्रकाश चाहिए, नया प्रकाश चाहिए।

जो घोर अन्धकार में नयी किरन को घोल दे,
जो नींद से मुंदे हुए सहस्त्र नेत्र खोल दे,
जो मौन है उन्हें ज्वलन्त दर्पदीप्त बोल दे,
जो डग यहाँ रुके हुए उन्हें सहर्ष डोल दे,

जो ला सके नया विहान वो उजास चाहिए,
हमें नवीन सूर्य का नया उजास चाहिए ,
हमें उजास चाहिए, नया उजास चाहिए ।
हमें प्रकाश चाहिए, नया प्रकाश चाहिए ।।

कि जो विलासपूर्ण जिन्दगी के छोड़ मोह को,
स्वदेश के लिए वरे विराट राजद्रोह को,
करे न भूल कर जो उफ़, भरे आह-ओह को,
कि जो समान मानता हो गेह और खोह को

जो दुःख में रहे अडोल वो हुलास चाहिए ,
हमें असीम आस का नया हुलास चाहिए ,
हमें हुलास चाहिए, नया हुलास चाहिए ।
हमें प्रकाश चाहिए, नया प्रकाश चाहिए ।।

कि जो स्वदेश की गुहार पर तुरन्त आ सके,
जो तोड़ व्यूह शत्रु का समुद्र पार जा सके,
कि जो अकुंठ कंठ से अमर्त्य गान गा सके,
कि लोक में अशोक स्वाभिमान को जगा सके,

जो दे सके नया विधान वो सुभाष चाहिए,
हमें प्रदीप्त प्राण का नया सुभाष चाहिए ,
हमें सुभाष चाहिए, नया सुभाष चाहिए ।
हमें प्रकाश चाहिए, नया प्र काश चाहिए ।।

कि जो स्वदेश के लिए स्वदेह को घुला सके,
दधीचि-सा स्वमृत्यु को स्वयं यहाँ बुला सके,
बना विशाल फ़ौज को जो शत्रु को रुला सके,
जिसे कभी नहीं स्वदेश भूलकर भुला सके
जो ला सके वसंत मास वो विकास चाहिए ,

हमें समस्त देश का नया विकास चाहिए ,
हमें विकास चाहिए, नया विकास चाहिए ।
हमें प्रकाश चाहिए, नया प्रकाश चाहिए ।।

हमें जो दे अमेय राम विश्वमित्र ज्ञान से,
हमें जो दे अजेय पार्थ द्रोण स्वाभिमान से,
हमें जो दे सुचारू चन्द्र विष्णुगुप्त ज्ञान से,
हमें जो दे सके प्रताप विप्र प्राण दान से

जो दे सके हमें शिवा वो रामदास चाहिए ,
हमें समर्थ गुरु महान रामदास चाहिए ,
कि रामदास चाहिए, कि रामदास चाहिए ।
हमें प्रकाश चाहिए, नया प्रकाश चाहिए ।।

जिसका है ताप सूर्य में औ शीत सोम-सोम में,
जिसके स्वदेश प्रेम का समुद्र रोम - रोम में,
जिसकी अडोल आस्था अनन्त ओम-ओम में,
जिसकी मशाल प्रज्वलित तमस्त्रि तोम-तोम में,

जो व्योम को कंपा सके वो अट्टहास चाहिए .
हमें भावेश रूद्र का महाट्टहास चाहिए
महाट्टहास चाहिए, महाट्टहास चाहिए ।
हमें प्रकाश चाहिए , नया प्रकाश चाहिए ।।

जिनके कुकर्म से स्वदेश आज खंड-खंड है,
नीच-चोर बोलता अभीत अंड-बंड है
जो राम के नहीं हराम के प्रचण्ड भंड है
जो रीति-नीति से सदा अविज्ञ जंड-शंड है

उनको करे द्विखंड जो वो सुर्यहास चाहिए
विराट देश को , विराट सूर्यहास चाहिए
कि सुर्यहास चाहिए, सुर्यहास चाहिए।
हमें प्रकाश चाहिए, नया प्रकाश चाहिए।।

जो आज ढोंग से अरे, बने हुए महान हैं,
जो है प्रचण्ड भ्रष्ट, किन्तु देश में प्रधान है ,
जिनके कठोर हाथ में अपंग संविधान है,
जिनसे स्वदेश आज हो रहा लहुलुहान है

उनका करे विनाश जो वो सर्वनाश चाहिए ,
हमें अनीति का तुरंत सर्वनाश चाहिए ,
कि सर्वनाश चाहिए, कि सर्वनाश चाहिए ।
हमें प्रकाश चाहिए, नया प्रकाश चाहिए ।।

कि चाहिए हमें कराल कलिका दिगम्बरा,
शत्रु - मान - मर्दिनी , कपर्दिनी चिदम्बरा ,
कि चाहिए दुर्गावती , प्रभावती , प्रमद्वरा,
महान ज्ञान मंडिता सुपंडिता ऋतंभरा,

कि जो बेडौल पत्थरों को देव रूप दे सके,
वो सं' तराश चाहिए, वो सं' तराश चाहिए
कि सं' तराश चाहिए, कि सं' तराश चाहिए ।
हमें प्रकाश चाहिए, नया प्रकाश चाहिए ।।