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हमें फिर बरगलाया जा रहा है / दीपक शर्मा 'दीप'

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हमें फिर बरगला या जा रहा है
ख़ुदा का नाम लाया जा रहा है

तबस्सुम ही चबाया जा रहा था
तबस्सुम ही चबा या जा रहा है

वही है ज़िन्दगी,है कर्ज़ यानी
चुका ना था,चुकाया जा रहा है

बहुत हैरत-ज़दा हैं, क्या बतायें
 बँधे हैं पांव, जा या जा रहा है

वही पर्दा है अपनी आँख पे जो
 उसी से मात खाया जा रहा है

जगाया जा रहा है रोज़ ख़ुद को
जगा के फिर सुलाया जा रहा है

  मकाँ नामूनिशां में भी नहीं और
महीने का किराया जा रहा है