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हमें लेकर के कितनी दूर तक जाएगी ज़िन्दगी / आशीष जोग

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हमें लेकर के कितनी दूर तक जाएगी ज़िन्दगी,
अभी और रंग कितने हमको दिखलाएगी ज़िन्दगी|

कभी सोचा न था इक दिन मेरा भी हश्र ये होगा,
मगर अब सोचता हूँ कैसे हाथ आयेगी ज़िन्दगी|

बहुत वीरानगी है अब यहाँ पर दिल नहीं लगता,
न जाने फिर कभी क्या गुनगुनायेगी ज़िन्दगी|