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हमें संपूरित होना है / ईहातीत क्षण / मृदुल कीर्ति
Kavita Kosh से
एक अंतहीन पृथ्वी ,
एक अंतहीन आकाश ,
आधार फ़िर भी नहीं.
आधार खोजना आरम्भ से ही त्रुटि पूर्ण होना है.
हम आधार खोजने नहीं,
आधार हीन होने आए हैं.
पार्थिव और दिव्य के बीच ,
आधार खोजते ख्जते हम और अधिक स्थूल होते चले जाते हैं.
इस अनंत पृथ्वी और आकाश को छोड़कर ,
अनंत शून्य में विलय होना है.
मर्त्य माटी में अमरत्व को पाना है.
हमें तो समय के आर पार जाना है.
जहाँ समाप्त कुछ होता ही नहीं ,
केवल आप्त होता है.
अंत में संपूरित होता है.
यह संपूरित तप का हिमालय ,
सुगम है,
दुर्गम है, या अगम
यह निर्भर करता है ,साधक की अभीप्सा पर,
उसकी साधना के सातत्व पर .