हमें सुबह से / कुमार रवींद्र

हमें सुबह से
याद आ रहा है
पुरखों का आँगन वाला घर
 
पता नहीं
कितनी यादों के
उस घर से नाते हैं
जब भी आँगन हमें टेरता
हम बिरहा गाते हैं
 
अब तो अपने पास
सिर्फ़ हैं
छोटे-छोटे बिना बात के डर
 
तंग गली में था वह घर
आँगन था खुला -खुला
दिखा वहीं था
हमको पहला सूरज धुला-धुला
 
वहीं छेड़ता था
चिड़िया को
रोज़ चिरौटा फुला-फुलाकर पर
 
ठीक बीच में आँगन के था
जो तुलसीचौरा
अम्मा कहती थीं -
'रहते हैं यहीं गौर-गौरा'
 
यह भी सच है
बरसों-बरसों
उस आँगन में उन्हें मिला आदर

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.