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हमें सोने दो / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
शोर मत करो
हमें सोने दो
क्या हुआ
जो गुलाबी पंखुरियों में
धंस रहे हैं
जहरीले नाखून
बढ़े हुए दाँत
चीथ रहे हैं
तितलियों के रंगीन पर
जलाए जा रहे हैं
खर-पात
छटपटा रही है
सुनहरी चिड़िया
खूनी पंजों में
होता ही रहता है
यह सब
मत जगाओ मुझे
देखने दो
परी लोक के स्वप्न।