भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हमें ही अब वाल्टेयर हो जाना चाहिए / यशवंत मनोहर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: यशवंत मनोहर  » हमें ही अब वाल्टेयर हो जाना चाहिए

हम थोड़े से सीधे हो जाएँगे, आगे की सड़कें सीधी ही हैं,
अँधेरे से तलाक़ ले लेंगे, सड़के उजालों से भरी ही हैं,
समय बदल गया है, हमें हमारी आदतें भी बदलनी होंगी ।

आसानी से काट सकेंगे इस पिंजरे को, हमें सिर्फ़ आरा बनना होगा,
दर्द पैरों में होता है, और हम माथे पर पट्टी बाँधते हैं
स्वतंत्रता का टिकट निकालते हैं और गुलामी की गाड़ी में बैठते हैं
आदत से आनेवाले पशुओं के स्वप्नों को हमें टालना चाहिए,
'संघर्ष' के सदस्य हैं हम, 'ज़हर' से मित्रता टालनी चाहिए ।

मनुष्यता की लड़ाई जीतने के लिए,
हमें शिखंडी हो जाने से बचना चाहिए
'सूर्यसुत' हैं हम, मित्रो, मरण सत्व को टालना चाहिए ।

रास्ते तो अँगारों से भरे हुए हैं, हमें केवल प्रभंजन बनना है,
बस्तियाँ भड़क सकती हैं क्रांति से, हमें ही वाल्टेयर बनना चाहिए ।


मूल मराठी से अनुवाद : सूर्यनारायण रणसुभे