भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमें ही जतन से जलाने भी होंगे / अशोक रावत
Kavita Kosh से
हमें ही जतन से जलाने भी होंगे,
दिये आंधियों से बचाने भी होंगे.
जहाँ होगा हद से ज़ियादाअँधेरा,
वहीं रौशनी के ठिकाने भी होंगे.
यूँ ही कोई पत्थर नहीं फेंकता है,
यहाँ कुछ हमारे दिवाने भी होंगे.
कहाँ सोचता है मोहब्बत में कोई,
कि रुसवाई होगी, फसाने भी होंगे.
अगर हौसले को बचा ले गए हम,
मुसीबत भरे दिन सुहाने भी होंगे.
वो अश्कों में डूबे, तुम्हारे सभी ख़त,
हमें क्या पता था, जलाने भी होंगे.
दरख्तों की सीरत सभी जानते हैं,
परिंदों में तो कुछ बिराने भी होंगे.
लबों पर हंसी को सजाना भी होगा,
हमें अश्क अपने छुपाने भी होंगे.