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हमेशा माँगते रहना मेरी आदत पुरानी है / बेगम रज़िया हलीम जंग

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हमेशा माँगते रहना मेरी आदत पुरानी है
हमेशा ही अता करना ये तेरी मेहर-बानी है

मुकम्मल है तेरी यकताई इस में शक नहीं कोई
न कोई तेरे जैसा है न कोई तेरा सानी है

ये नज़्म-ए-काएनात एहसास ये हम को कराता है
यहाँ हर इक नज़ारा तेरे होने की निशानी है

गुनाहों पर मेरे ये तेरी रहमत का करिश्मा है
ज़मीं पर सब्ज़ हैं जंगल न दरया है न पानी है

मेरे आमाल तो ऐसे नहीं है ऐ मेरे मौला
बना दे तू मुझे मोमिन तो तेरी मेहर-बानी है

गुनाहों पर गुनह करती है लेकिन बख़्श दे इस को
ख़ुदाया उम्मत-ए-महबूब की ये इक दिवानी है