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हमेशा से ज़माने के सितम सहते चले आये / संदीप ‘सरस’
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हमेशा से ज़माने के सितम सहते चले आये।
कि दरिया हैं तभी हर हाल में बहते चले आये।
बुजुर्गों की दुआएँ आज भी महफ़ूज हैं उसमें,
पुराना घर जहाँ हम उम्र भर रहते चले आये।
भले बच्चे हमारे,अनसुने कर दें सुझावों को,
हमारा काम कहना था तो हम कहते चले आये।
हमारे हौसलों की हद कहाँ तक आजमाओगे,
दिये सा आँधियो के बीच में जलते चले आये।
हमारा वक़्त बदलेगा, तुम्हारी राय बदलेगी,
इसी उम्मीद के साये तले पलते चले आये।
सफ़र लम्बा रहे,पगडंडियां अच्छी नहीं होती,
भले हम देर से पहुंचे मगर चलते चले आये।
नई नस्लें पुरानी बंदिशों को बोझ कहती हैं,
हमेशा हम नये बदलाव में ढलते चले आये।
वो रिश्तों की गणित के एक संजीदा खिलाड़ी थे,
हमारे स्नेह के अनुपात में छलते चले आये।