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हमेशा / चंद्र रेखा ढडवाल
Kavita Kosh से
दु:ख हमेशा
नहीं आता
दुश्मनों की दहाड़ में
दोस्तों की हथेलियों की
मद्धम दस्तक-सा भी
छूता है द्वार
कभी कभी.