भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम्में आग लगाय लेॅ ऐलॉे छी / अश्विनी
Kavita Kosh से
हम्में आग लगाय लेॅ ऐलॉे छी
हम्में बाग लगाय लेॅ ऐलोॅ छी
डरलोॅ दबलोॅ सब लोगोॅ केॅ
एक राग सुनाय लेॅ ऐलोॅ छी
सगरोॅ लागै सूनोॅ-सूनोॅ
ममता कानै छै कलपै छै
उम्मीदोॅ के वागोॅ में
झुटठॉे केरोॅ फूल बिखरलो छै
श्मशानोॅ के बीचोॅ में दीया एक जलाय लेॅ ऐलोॅ छी।
धर्मोॅ के कफ्फन ओढ़ी केॅ
गिद्धा-कौआ सब नाचै छै
मानवता रोॅ लाशोॅ पर
बगुला गीता गाबी बाँचै छै
इनक्लाव रोॅ धरती पर संदेश सुनाय लेॅ ऐलोॅ छी।
शहरोॅ के नै तों बात करोॅ
गाँवोॅ डुबलो छै खूनोॅ में
डाकिन खप्पर लै-नाचै छै
रात-दुपहरिया दिनोॅ में
के के जैतै के के रहतै के विगुल बजाय लेॅ ऐलोॅ छी।