भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम्में आरो हमरोॅ देश / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यै हालत में जीवी लेना आसान नै छै
खुशबू सें खाली छै धरती
यहाँ चंचल सपना नहाबै के पैन्हें दफन होय जाय छै
कोय केनां आपनोॅ पियासोॅ के जी बहलैतेॅ
पीड़ा सें भरलोॅ छी तेॅ सिर्फ हम्में
हमरैं नांकी लोग
जेकरा लेली ई देश ओकरोॅ दिल आरो दिमागोॅ सें भी बड़ोॅ छै
सच्चे आय हम्में बहुते दुखी छी
कि आय ई देशोॅ में
हमरा चाहला के बावजूद भी
हमरोॅ ई दिल आरो दिमाग लै वाला कोय नै
ई नजर दौं भी तेॅ केकरा
आबै वाला नस्ल पर भी हमरा भरोसोॅ नै छै
कैन्हेॅ कि- सुभद्रा के कोख में पली रहलोॅ अभिमन्यु
चक्रव्युह भेदन कला सीखै के बदला
सीखी रहलोॅ छै
आपनोॅ वतन के सरहद छोटोॅ करै के कला।
जनमतैं ऊ शामिल होय जैते
नौकरशाह बनाम पूंजीवादी लोकतंत्र केॅ मजबूत करै में
दोस्त, हमरोॅ ई अरज मानिहौ
कि हमरा मरला के बाद हमरोॅ मजार
ऐन्हां जगह पर बनवैहियो
जहाँ पर देश तोड़ैवाला कोनोॅ आवाज नै जाय
आरो कोशिश करिहौ
हमरोॅ ई दोनों आँख ओकरा दै केॅ।
जेकरा में खाली एक्के चाहत बसलोॅ छै
आपनोॅ देश भारत के इंच भर जमीन भी
नै घटै दै रोॅ सपना।