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हम्मैं जों समझै छियै देश केॅ ई घर हमरोॅ / अमरेन्द्र

हम्मैं जों समझै छियै देश केॅ ई घर हमरोॅ
यहू समझौ कैन्हें नी छेकै ई अख्तर हमरोॅ
हमरोॅ धोती नै बने खाली पगड़ियो सिर रोॅ
ओढ़ना कभियो बनै एकठो ई चादर हमरोॅ
आपनोॅ आमोॅ केॅ आबेॅ हुनिये सिनी तोड़ै छै
जौनें ढेपोॅ सें झड़ाय देलेॅ छै मंजर हमरोॅ
खूब उत्पात मचाबै छै ई राकस सब्भें
योगनिद्रा में अभी सुतलोॅ छै ईश्वर हमरोॅ
हमरोॅ कुशवाहा, सरल, सूरो, समीरे नै बस
शबरपा हमरो, सरहपादो, दीपंकर हमरोॅ
प्रेम के सोरसती की तोरोॅ सुखी गेलोॅ छौं
दिल तेॅ छेलै ही यहाँ परती आ बंजर हमरोॅ
केकरो मरलै पेॅ यहाँ लोगें ओकरोॅ गुण गाबै
मरलै पर करतै तबेॅ दुनियाँ ई आदर हमरोॅ

-2.6.91