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हम-तुम दोनों बेवकूफ़ हैं इतने / निकअलाई निक्रासफ़ / अनिल जनविजय

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मैं और तू, हम दोनों, नासमझ हैं, बकलोल हैं, गँवार हैं
गुस्सा धरा हुआ है नाक पर, पल-पल में होते हैं नाराज़
बात-बात में ख़फ़ा हो जाते हैं, और राहत पाने के लिए
नाजायज़ बोल बोलते हैं बेरहम, बदल जाता है मिज़ाज

जब नाख़ुश हो तू मुझसे, निकाल मन की सारी कुढ़न
मन में तेरे जो तकलीफ़ है, कसक है, जो भी है डाह
जान मेरी, खुलकर कह मन की, पीर समूची औ’ जलन
यदि शान्त रहेगी ऊपर से तू, दुख भीतर होगा अनकहा

यदि हमारे इश्क़ में लाज़िमी है कोई बयान या इबारत
तो चलो, हम उससे लें ख़ुशी औ’ कुछ सुख-चैन के पल
कहासुनी, कलह औ’ झगड़ा भूलें, करें प्यार - मुहब्बत
चाहें फिर से इक-दूजे को गहरा, मन हो नाज़ुक-कोमल

1851

मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय

और अब यह कविता मूल रूसी भाषा में पढ़ें
             Николай Некрасов
    Мы с тобой бестолковые люди

Мы с тобой бестолковые люди:
Что минута, то вспышка готова!
Облегченье взволнованной груди,
Неразумное, резкое слово.

Говори же, когда ты сердита,
Все, что душу волнует и мучит!
Будем, друг мой, сердиться открыто:
Легче мир — и скорее наскучит.

Если проза в любви неизбежна,
Так возьмем и с нее долю счастья:
После ссоры так полно, так нежно
Возвращенье любви и участья…

1851 г.