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हम-तुम / मनीष मूंदड़ा

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हर शख््स यहाँ गंभीर हैं
हर शाम यहाँ गमगीन हैं
हर शाख पर उदासीनता का डेरा हैं
हर घर में आज छाया अँधेरा हैं

कर सके कुछ ख़ुशनुमा हम तुम
ला सके जो थोड़ी ख़ुशियाँ गर हम तुम
गर जला सके उजालों की मशाल हम तुम
पेश कर सके गर प्यार की मिसाल हम तुम

तो कहीं कुछ शख़्स शायद बदलेंगे
तो कहीं कुछ शामें भी ख़ुशनुमा होंगी
कुछ शाख़ों पर फिर से चहचहाहट होगी
शायद कुछ घरों में जलेंगी फिर से उजालों की लौ

कुछ तो ठीक होगा कहीं पर