हम अगर रद्द-ए-अमल अपना दिखाने लग जाएँ
हर घमंडी के यहाँ होश ठिकाने लग जाएँ
ख़ाक-सारों से कहो होश में आने लग जाएँ
इस से पहले कि वो नजरों से गिराने लग जाएँ
देखना हम कहीं फूले न समाने लग जाएँ
इंदिया जैसे ही कुछ कुछ तिरा पाने लग जाएँ
फूल चेहरे ये सर-ए-राह सितारा आँखें
शाम होते ही तिरा नाम सुझाने लग जाएँ
अपनी औक़ात में रहना दिल-ए-ख़ुश-फ़हम ज़रा
वो गुज़ारिश पे तिरी न खुजाने लग जाएँ
हड्डिया बाप की गूदे से हुई हैं ख़ाली
कम से कम अब तो ये बेटे भी कमाने लग जाएँ
एक बिल से कहीं दो बार डसा है मोमिन
ज़ख़्म-ख़ुर्दा हैं तो फिर ज़ख़्म न खाने लग जाएँ
दावा-ए-ख़ुश-सुख़नी ‘ख़ैर’ अभी ज़ेब नहीं
चंद ग़ज़लों ही पे बग़लें न बजाने लग जाएँ