भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम अलग सी एक ख़ुशबू जानते हैं / विकास जोशी
Kavita Kosh से
हम अलग सी एक ख़ुशबू जानते हैं
हैं बरहमन और उर्दू जानते हैं
काम चुप रह के किया करते हैं लेकिन
रात के सब राज़ जुगनू जानते हैं
बात उनसे दोस्ती की राएगां है
जो फ़क़त ख़ंजर-ओ-चाकू जानते हैं
ख़ामुशी से आ गिरे दामन पे अक्सर
दर्द की शिद्दत को आंसू जानते हैं
क्यूं महकता है चमन आमद से तेरी
फूल भी क्या तेरी ख़ुशबू जानते हैं
अर्ज़ियाँ कब रोकना है कब बढ़ाना
ये हुनर दफ्तर के बाबू जानते हैं
मुश्किलों में मुस्कुरा के जीने वाले
फिर यक़ीनन कोई जादू जानते हैं