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हम आगही इश्क़ का अफ़्साना कहेंगे / 'फना' निज़ामी कानपुरी
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हम आगही इश्क़ का अफ़्साना कहेंगे
कुछ अक़्ल के मारे हमें दीवाना कहेंगे
रहता है वहाँ ज़िक्र-ए-तुहूर ओ मय-ए-कौसर
हम आज से काबा को भी मय-ख़ाना कहेंगे
उनवान बदल देंगे फ़क़त आप की ख़ातिर
हम जब भी कहेंगे ही अफ़्साना कहेंगे
परवाने को हम शम्मा समझते हैं सर-ए-शाम
हँगाम-ए-सहर-ए-शम्मा को परवाना कहेंगे
सर रख के तेरे पाँव पे हम करते हैं शिकवा
कुछ लोग इसे सज़्दा-ए-शुकराना कहेंगे
बन जाएगा अल्लाह का घर ख़ुद ही किसी दिन
फिलहाल ‘फ़ना’ दिल को सनम-ख़ाना कहेंगे