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हम आदमी नहीं / केदारनाथ अग्रवाल
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हम
आदमी नहीं,
लिबास में
आदमी हैं।
यह लिबास
‘सरकसी’ जानवरों का है
जो
हमें
अपनी नसल का
समझते हैं।
रचनाकाल: १९-०९-१९६९