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हम आवारा गाँव-गाँव बस्ती-बस्ती फिरने वाले / हबीब जालिब
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हम आवारा गाँव-गाँव बस्ती-बस्ती फिरने वाले
हम से प्रीत बढ़ा कर कोई मुफ़्त में क्यूँ ग़म को अपना ले
ये भीगी-भीगी बरसातें ये महताब ये रौशन रातें
दिल ही न हो तो झूटी बातें क्या अन्धियारे क्या उजियाले
ग़ुँचे रोएँ कलियाँ रोएँ रो-रो अपनी आँखें खोएँ
चैन से लम्बी तान के सोएँ इस फुलवारी के रखवाले
दर्द-भरे गीतों की माला जपते-जपते जीवन गुज़रा
किस ने सुनी हैं कौन सुनेगा दिल की बातें दिल के नाले