भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम उन्हें सलामी देते हैं / विमल राजस्थानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तू पूज सूर्य, शशि, तारों को
जलते - बुझते अंगारों को
दे दान-दक्षिणा जी भर कर
इन प्रपंचियों - बटमारों को

शशि - सूर्य चरण - रज पाने को, जिन वीरों की, अकुलाते हैं
हम उन्हें सलामी देते हैं, मस्तक हम उन्हें नवाते हैं

तू चन्द्र - ग्रहण पर भूखोें मर
गंगा में गोते खोये जा
खोपड़ियाँ खूब घुटाये जा
पापों के पुंज जलाये जा

जो सूर्य - चन्द्र के माथों पर मिट्टी का तिलक लगाते हैं
हम उन्हें सलामी देते हैं, मस्तक हम उन्हें नवाते है

तू वज्र मूर्ख अज्ञानी है
अंधा, बकलोल, गुलामी है
सीमित बैलों की जोड़ी तक -
बस तेरी राम कहानी है

तू वेद- पुराण चबाये जा, ‘मंत्रों’ की दूर्वा खाये जा
जो नर - पुंगव है वे अपने दम पर सृष्टियाँ रचाते है
हम उन्हें सलामी देते हैं, मस्तक हम उन्हें नवाते है