भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम एक कुराह चलीं तौ चलीं / ठाकुर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम एक कुराह चलीं तौ चलीं, हटकौ इन्हैं ए ना कुराह चलैं।
इहि तौ बलि आपुनौ सूझती हैं, प्रन पालिए सोई, जो पालैं पलै॥
कवि 'ठाकुर प्रीति करी है गुपाल सों, टेर कहौं, सुनौ ऊंचे गलै।
हमैं नीकी लगी सो करी हमनै, तुम्हैं नीकी लगौ न लगौ तो भलै॥