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हम और तुम-4 / बोधिसत्व
Kavita Kosh से
हमने नासिका से नासिका पर
ललाट से ललाट पर
पुतलियों से पुतलियों पर
बरौनियों से बरौनियों पर
भौहों से भौहों पर
रोमावलि से रोमावली पर
पीठ से पीठ पर
हथेलियों से हथेलियों पर
जिह्वा से जिह्वा पर
अँगुलियों से अँगुलियों पर
दाँतों से गिन-गिन कर सघन तीक्ष्ण दँत-पंक्तियों पर अंकित किए
अपने नाम और चिह्न
पसीने से पसीने की बूँदों पर लिखा अपना होना
प्राण-वायु पर लिखा प्राण-वायु से
और उसको लौटा कर रख दिया एक दूसरे के हृदय के सकोरे में
इसी सब में
हमने जाना कि छूने से नहीं मिटते तन पर पड़े चोट के चिह्न
हमने पाया कि चूमने से भी नहीं मिटते मन पर पड़े चोट के चिह्न
हमने पाया कि कैसे भी खींची गई हो स्नेह-रेखा
उसको महाकाल भी नहीं मिटा पाता