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हम और तुम / राम लखारा ‘विपुल‘
Kavita Kosh से
हम हतभागी
उस पीपल से जिसका जीवन वन में छूटा।
हम चिंकारे
उस मरूथल के जिसमें छलका दर्शन झूठा।
हम दुखियारे
पांव सदी के जिसमें छाले पड़े हुए हैं।
हम दरवाजे
उस मंदिर के जिस पर ताले जड़े हुए हैं।
और तुम .............
तुम होली का
रंग गुलाबी हर कपोल की मनोकामना।
तुम शिव शंकर
कैलाशी की सिद्धिदायिनी पूर्ण साधना।
तुम थे जिसके
आगे सारे बिम्ब जगत के हार गए हैं।
तुम थे जिसकों
गाकर मेरे गीत स्वर्ग के द्वार गए हैं।