हम कथा सुनाते है, सतवादी हरिश्चंद्र दानी की / प.रघुनाथ
हम कथा सुनाते हैं, सतवादी हरिशचन्द्र दानी की ।।टेक।।
अवधपुरी का राजा दानी, त्रिशंकु का हुआ लाल,
जप तप दान यज्ञ करता, वेदों की बरत के चाल,
पुण्य की आवाज पहुंची, तीनों लोक तत्काल,
तारावती रानी थी, एक बेटा था उसका रोहताश,
आत्मा का ज्ञान और, जीव में आनन्द प्रकाश,
विश्वामित्र ऋषि उसकी, करने आये अजमाश,
ऋषि शक्ल बनाते हैं, वाराह सूअर प्राणी की।।1।।
शाही बाग उजाड़ दिया, और माली भी भगाया मार,
रखवालों ने दई दुहाई, दरबारों में हुई पुकार,
धनुष बाण लेके पीछे, बाराह के भागे सरदार,
सधा ना निशाना, राजा मन में हुआ मजबूर,
आगे पीछे भगते-भगते, बनी में लिकडग़े दूर,
आया था पसीना काया, थकावट में हुई चूर,
अब नज उठाते हैं, एक नदी निगाह पड़ी पानी की।।2।।
जल था पवित्र शीतल, राजा ने स्नान किया,
चन्दन लेके आया ऋषि, उसका भी सन्मान किया,
साठ भार सोना चन्दन, लगवाने में दान किया,
घोड़े ऊपर चढक़े राजा, चला नगरी को लौट,
एक ऋषि लिए खड़ा, कन्या और वर की जोट,
राजा से बोला इनका, संस्कार करना ओट,
वेदी ब्याह रचाते हैं, दई ताली दान रजधानी की।।3।।
राज दान करके राजा, दरबारों में चला आया,
चन्दन वाला ऋषि खड़ा, दरबारों में दर्शन पाया,
साठ भार सोना करा संकल्प, नदी में नहाया,
राज का स्वामी ये लडक़ा, तेरा पास नहीं माया,
आज है अजमाश तेरी, बेकनी पड़ेगी काया,
ऋषि जी की बात सुनके, राजा नहीं घबराया,
रघुनाथ जो गाते हैं, गति मधुरकरी गाने की।।4।।