हम कभी रुकते नहीं / नजवान दरविश / मंगलेश डबराल
मेरा कोई देश नहीं, जहाँ वापस जाऊँ मैं
और कोई देश नहीं, जहाँ से खदेड़ा जाऊँ ।
एक पेड़, जिसकी जड़ें
बहता हुआ पानी हैं
अगर वह रुक जाता है, तो मर जाता है
और अगर नहीं रुकता
तो मर जाता है ।
मैंने अपने सबसे अच्छे दिन बिताए हैं
मौत के गालों और बाँहों में
और वह ज़मीन जो मैंने हर दिन खोई है
हर दिन मुझे हासिल हुई फिर से
लोगों के पास थी एक अकेली ज़मीन
लेकिन मेरी हार मेरी ज़मीन को कई गुना बढाती गई
हर नुक़सान के साथ नई होती गई
मेरी ही तरह उसकी जड़ें पानी की हैं
अगर वह रुक गया तो सूख जाएगा
अगर वह रुक गया तो मर जाएगा
हम दोनों चल रहे हैं
धूप की शहतीरों की नदी के साथ-साथ
सोने की धूल की नदी के साथ-साथ
जो प्राचीन ज़ख़्मों से उगती है
और हम कभी रुकते नहीं
हम दौड़ते जाते हैं
कभी ठहरने के बारे में नहीं सोचते
ताकि हमारे दो रास्ते मिल सकें आपस में ।
मेरा कोई देश नहीं, जहाँ से खदेड़ा जाऊँ मैं,
और कोई देश नहीं, जहाँ वापस जाऊंँ
रुकना
मेरी मौत होगी ।
भागो !
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मंगलेश डबराल