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हम कां कै रये महल अटारी मिल जावै / महेश कटारे सुगम

हम कां कै रये महल अटारी मिल जावै
दोई टैम रोटी तिरकारी मिल जावै

हम कां चाहत भरै तिजोरी पइसन सें
काम चलावे तनक उधारी मिल जावै

फसल उनारी<ref>रबी की फ़सल</ref> सें पूरौ अब नईं पर रऔ
अच्छौ रैहै अगर सियारी <ref>खरीफ की फ़सल</ref> मिल जावै

मेंनत करकें ज्वानी में हो गए बूड़े
मौड़ा खों डूटी सरकारी मिल जावै

ऐसौ कऊँ हो जाये अगर तौ आय मजा
मोहरन सें इक भरी कनारी<ref>मिटटी का बर्तन</ref> मिल जावै

कैसे हौ नादान कभऊं ऐसौ भऔ है
बिना करें दौलत अबढारी<ref>अपने आप</ref> मिल जावै

शब्दार्थ
<references/>