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हम किसी की ख़ुशनुमा / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
हम किसी की ख़ुशनुमा यादों से आगे हो गए।
तुम रहो सावन में हम भादों से आगे हो गए।
पाँव सूखे हैं मेरे और सूखा-सूखा हर तरफ़,
गाँव के हम कीचड़ वह कादो से आगे हो गए।
हम कहाँ पहुँचे बताओ, आधुनिक इस दौर में,
लग रहा है बाप और दादों से आगे हो गए।
मैंने जयशंकर की जब से है पढ़ी ‘कामायनी’,
वह शराबी लगता है यादों से आगे हो गए।
उड़ रहे हैं आसमानों में हमेशा ख़्वाब के,
हम नवाबों शाह के जादों से आगे हो गए।
आस में था शाम तक, ‘प्रभात’ वह आया नहीं,
ऐसा लगता है कि वह वादों से आगे हो गए।